बचपन में किसी ने बोला था कीचड में पत्थर मारोगे तो छींटे खुद पर ही आकर गिरेंगे , पर हमे भी तो अब कीचड में खेलने कि आदत हो गयी है, कुछ छींटे आ भी गिरे तो उसके लिए भी एक पंक्ति है मेरे पास-
दाग लगने से अगर कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे है न ।
खैर छोड़िये इन सब बातो को , मुद्दे पर आते है कीचड से मेरा मतलब तो समझ ही गए होंगे आप , देश कि राजनीती ; हाँ उसी गन्दी राजनीती को मैं कीचड बोल रहा हु जो मुम्बई में लाशों पर पनपी, गोधरा में दोहराई गयी। कभी बाबरी मस्जिद तो कभी कश्मीरी पंडित हर बार हुक्मरानों के तख़्त सजाने के लिए हम इंसानों कि बली चढ़ाई गयी। ताज़ा मामला मुजफ्फरनगर का है , दंगों के तंदूर पर जलावन लकड़ी कि जगह इंसानियत कि बली चढ़ा कर सियासी रोटियां सेकी जा रही है।
कभी मुलायम तो कभी आजम खान, कोई इन्हे विपक्षी पार्टी के सेट किये हुए लालची लोग बोलता है तो कोई इनकी तुलना कूड़ेदान से कर देता है। कभी गांधी परिवार इनकी चर्चा कर देता है तो कभी मोदी साब कुछ कमेंट कर देते है पर इनकी मदद के लिए किसी के पास वक़्त नहीं हैं , लोकसभा चुनाव जो आये खड़े है।
इसी कीचड में पत्थर मारने के लिए ब्लॉग स्टार्ट किया है , जब तक ये राजनीती कीचड बनी रहेगी हम भी पत्थर मारते रहेंगे। अगर इस कलम कि जुबान को समझ कर इन दंगा पीडितो के लिए कोई अगर कुछ कर जाए तो मैं वाकई मान लूंगा ये कीचड उछलने के बाद मुझ पर लगने वाले दाग अच्छे हैं।