क्या कांग्रेस ख़त्म होने जा रही है , क्या 128 साल पुरानी कांग्रेस निकल चुकी है अपने पतन की तरफ ?
आजादी के बाद देश को सबसे पहली सरकार देने वाली मौलाना कलाम , चाचा नेहरू और सरदार पटेल की वो कांग्रेस जिसे कभी राजीव गांधी के नेतृत्व में 414 सीटें मिली थी ,आज 44 सीटों के साथ लोकसभा में पहुंची हुई है और इस युवा विकासशील भारत के मन से उतरते हुए नजर आ रही है।
परन्तु कांग्रेस का यह हाल होना लाजमी था , जिस हिसाब से उन्होंने बीते 10 सालों की अपनी हुकूमत में हमें तरह तरह के भ्रष्टाचार और घोटालों से परिचित कराया था, ये अंदेशा था कि कांग्रेस इस बार सत्ता में नहीं आ पायेगी पर कांग्रेस के इतने बूरी तरह पिटने की कल्पना तो किसी ने नहीं की होगी। वैसे कांग्रेस के घोटालो और भ्रष्टाचार ने इस देश के मीडिया को सही ढंग से सक्रिय कर दिया वरना टीवी पर समाचार चैनल लगा कर तो दो ही चीज़ें देखी जाती थी : एक सुबह का राशिफल और दूसरा शाम को मौसम समाचार।
ये 2G , CWG , कोल गेट , आदर्श जैसे घोटालो ने सरकार का दामन ऐसा पकड़ा की किसी टाइम पर 400 से ज्यादा सीटें लाने वाली पार्टी को आज महज 44 सीटों से संतोष करना पड़ गया।
आदरणीय मनमोहन सिंह जो नब्बे के दशक में देश के लिए संकटमोचक साबित हुए थे , इस बार प्रधानमन्त्री रहते हुए भी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक अपने पद का उपयोग देश को आगे बढ़ाने के लिए नहीं कर पाये , वजह सबको पता है सत्ता को पूरी तरह से एक परिवार के हाथों की कठपुतली बना देने की कीमत मनमोहन सिंह ने अपनी इज्जत गंवा कर उठाई और कांग्रेस पार्टी ने अपने इतिहास का सबसे घटिया प्रदर्शन देकर।
बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस अब वापस उठ पाएगी ,क्या वापस कांग्रेस कोई ऐसा कमाल दिखा पायेगी जैसा इंदिरा ने 1980 के चुनावों में दिखाया था ?
राजनीति में कुछ भी संभव है , हो सकता है कांग्रेस अपनी खोई हुई साख वापस हासिल कर ले , लेकिन इसके लिए जरुरी है परिवारवाद से परें हट कर शीर्ष नेतृत्व में कोई बड़ा परिवर्तन हो ,कोई ऐसा परिवर्तन जो पूरे संगठन में नयी जान फूंक सके,पर अभी ऐसे परिवर्तन की दूर दूर तक कोई सम्भावना नजर नहीं आ रही है।
आजादी के बाद देश को सबसे पहली सरकार देने वाली मौलाना कलाम , चाचा नेहरू और सरदार पटेल की वो कांग्रेस जिसे कभी राजीव गांधी के नेतृत्व में 414 सीटें मिली थी ,आज 44 सीटों के साथ लोकसभा में पहुंची हुई है और इस युवा विकासशील भारत के मन से उतरते हुए नजर आ रही है।
परन्तु कांग्रेस का यह हाल होना लाजमी था , जिस हिसाब से उन्होंने बीते 10 सालों की अपनी हुकूमत में हमें तरह तरह के भ्रष्टाचार और घोटालों से परिचित कराया था, ये अंदेशा था कि कांग्रेस इस बार सत्ता में नहीं आ पायेगी पर कांग्रेस के इतने बूरी तरह पिटने की कल्पना तो किसी ने नहीं की होगी। वैसे कांग्रेस के घोटालो और भ्रष्टाचार ने इस देश के मीडिया को सही ढंग से सक्रिय कर दिया वरना टीवी पर समाचार चैनल लगा कर तो दो ही चीज़ें देखी जाती थी : एक सुबह का राशिफल और दूसरा शाम को मौसम समाचार।
ये 2G , CWG , कोल गेट , आदर्श जैसे घोटालो ने सरकार का दामन ऐसा पकड़ा की किसी टाइम पर 400 से ज्यादा सीटें लाने वाली पार्टी को आज महज 44 सीटों से संतोष करना पड़ गया।
आदरणीय मनमोहन सिंह जो नब्बे के दशक में देश के लिए संकटमोचक साबित हुए थे , इस बार प्रधानमन्त्री रहते हुए भी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक अपने पद का उपयोग देश को आगे बढ़ाने के लिए नहीं कर पाये , वजह सबको पता है सत्ता को पूरी तरह से एक परिवार के हाथों की कठपुतली बना देने की कीमत मनमोहन सिंह ने अपनी इज्जत गंवा कर उठाई और कांग्रेस पार्टी ने अपने इतिहास का सबसे घटिया प्रदर्शन देकर।
बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस अब वापस उठ पाएगी ,क्या वापस कांग्रेस कोई ऐसा कमाल दिखा पायेगी जैसा इंदिरा ने 1980 के चुनावों में दिखाया था ?
राजनीति में कुछ भी संभव है , हो सकता है कांग्रेस अपनी खोई हुई साख वापस हासिल कर ले , लेकिन इसके लिए जरुरी है परिवारवाद से परें हट कर शीर्ष नेतृत्व में कोई बड़ा परिवर्तन हो ,कोई ऐसा परिवर्तन जो पूरे संगठन में नयी जान फूंक सके,पर अभी ऐसे परिवर्तन की दूर दूर तक कोई सम्भावना नजर नहीं आ रही है।