हाथ में लाठी
और आँखों पे चश्मा लिए
स्वर्ग में बैठे बापू ने सोचा
चलो वापस अपने मुल्क घूम के आते है ,
दंगो में जलते हुए जिस घर से विदा ली थी
उस घर के ताज़ा हाल जान के आते है
जिद करी भगवान के आगे तो भगवान भी मान गए
इस लाठी वाले की जिद के आगे अब भगवान भी हार गए
स्वर्ग से धरती की डायरेक्ट ट्रैन में बैठे बापू ,
मिली फर्स्ट क्लास सीट बिना किसी रंगभेद के
अपना देश अपनी हुकूमत
घूमेंगे देखेंगे
कैसे है गरीब , बिना किसी मालिक अंग्रेज के
सोचते सोचते पता ही न चला
और बापू पहुँच गए हिंदुस्तान की जमी पर
कश्मीर की उन वादियों में पहुँच कर लगा
गाडी एक जन्नत से दूसरी में ले आयी है
शुक्रिया कहा भगवान को
और सोचा की संघर्ष की वो राते
अब जाकर रंग लायी है
भगवान भी मुस्कुरा दिए ऊपर से
बोले--"अरे बापू
अभी पूरी पिक्चर थोड़ी न दिखाई है "
आगे बढे गांधी भगवान को इग्नोर कर
तो एक पत्थर आकर लगा घुटने पर
सोचा की कोई बदमाश बच्चे होंगे
देखा गौर से तो दिखा की
बदमाश तो थे पर बच्चे नहीं
क्यूंकि बच्चे बैठे है घरों में
और गलियों में सेना है
बहकाये हुए कुछ युवक भी है
जिन्हे हिन्दोस्तान से अलग होना है
झेलम भी अब सूनी सी हो गयी है
सरकारें है
और सरकारों का अफस्पा भी
लेकिन वादियां अब खुनी सी हो गयी है
आतंकियों में नेता है
नेताओं में आतंकी है
घाटी की हवा में अब
लहू की बू आती है
नफरत ऊगली जा रही है वादी में
जहां कभी गुलशन थे प्यार के
इस सब पेचीदगी में
सीधा अगर कुछ बचा है
तो बस
कुछ पेड़ है चिनार के।
घबराये हुए बापू दौड़े स्टेशन की ओर ,
दिल्ली जाने के लिए गाड़ी में बैठे
अख़बार बेचने एक बच्चा आया बापू की ओर ,
तो ये बात भी दिल पे ले बैठे कि -
आजादी के 70 साल हो गए है
स्कूल जाने की बजाय बच्चे अख़बार बेच रहे है
खैर अख़बार ख़रीदा बापू ने
और सोचा की "छोटू " से चाय भी ले ली जाए
क्यूँ कि आंदोलन तो अब कर नहीं सकते थे ,
तो चलो बोहनी ही करवा दी जाए।
खोला अख़बार तो देखा की
कोर्ट ने किसी बलात्कारी को सजा सुनाई है,
बुरा लगा विक्टिम के लिए पर संतोष भी हुआ सोचकर कि
जीते आज भी न्याय और सच्चाई है ,
घबरा गए बापू
जब देखा की अड़तीस (38) लोग मर गए है इसके लिए,
और लाखों है जो सोचते है की ये भगवान है,
फिर सोचा की
हम तो मूर्तियों में भगवान ढूंढ़ते है ,
ये ढोंगी तो फिर भी इंसान है।
देश की चिंता में डूबे बापू पहुंचे राजधानी ,
सत्तर साल बाद भी ये जगह लगी जानी पहचानी
देखा गर्दन उठा के ,
चश्मे को नाक से ऊपर चढ़ा के
तो एक बैनर पर प्रधानमंत्री थे देश के
और देश को स्वच्छ रखने के नारे और सन्देश थे ,
देखा गौर से फोटो में तो दिखा वो चश्मा भी
जिसने कभी इंसान को मजहबों में बाँट कर देखा ही नहीं
वो चश्मा अब अभियान का लोगो बन गया है ,
पहले दंगे रोकता था अब खुले में शौच रोकता है।
तभी एक और आदमी आया ,
मुँह से गुटका थूका उसी बैनर के नीचे ,
और बापू की तरफ मुस्कुराया ,
देश की ये हालत जान कर ,
बापू ने वापस भगवान को फ़ोन लगाया-
"भगवान् रिटर्न ट्रैन कहाँ से है ? कितने बजे है ?..... "
एक सांस में इतने सवाल सुनकर
भगवन भी बोले हस कर-
"पास में ही गाज़ीपुर है ,
वही गाजीपुर जहां कचरे के पहाड़ है ,
बहुत से गरीब रहते है यहां ,सब बीमार है
यहां पूरे शहर की गन्दगी और कचरे की बू आती है,
इस बस्ती से भी मेरे यहां डायरेक्ट एक ट्रैन आती है ,
गरीबो से भरी है ये ट्रैन ,
थोड़ा जल्दी जाना ,
सुबह तुम्हे धरती की जन्नत में उतारा था,
अभी धरती का नरक भी देखते हुए आना। "
सुनकर बापू चले गाज़ीपुर की ओर,
नरक के रस्ते
वापस स्वर्ग की ओर
ट्रैन पकड़ी पहुंचे ऊपर ,
पूछा भगवान् ने -
"बापू कैसा रहा सफर ?"
बोले बापू -
"भगवान ये सही है कि,
मैं अपनी जिद के लिए शर्मिंदा हूँ
पर मैं आज भी अपने लोगों के दिलों में जिन्दा हूँ "
अब भगवान् ने भी सर पकड़ लिया ,
और गुस्से में बोल दिया -
"बापू तुम ज़िंदा हो तो बस कुछ नोटों में ,
कुछ यादों में और कुछ फोटो में,
कभी दीवारों पे टंगते हो ,
कभी तिजोरियों में सजते हो ,
गोडसे की गोली से तो बस जान गयी थी ,
बाकी उसूलों के हिसाब से तो
इस देश में तुम हर रोज़ मरते हो"
-कलमक्रान्ति