माला पहनाई और रख दिया एक.............
इस देश के वोटर ऐसे तो कभी नहीं थे ,वर्ना वादों के नाम पर अगर थप्पड़ बरसते तो अपने सारे सांसदों और विधायकों के गालों पर आज अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों की दी हुई निशानियाँ होती। इस सब के पीछे चाहे कोई राजनीतिक साजिश हो या कोई और वजह, पर है तो ये एक तरह कि कायरता ही, जब हमारा संविधान हमें खुद हमारा नेता चुनने का हक़ देता है तो चुनाव से पहले ऐसी हिंसा शर्मनाक है।
ये स्याही ,अंडे और थप्पड़ का कल्चर हमारे हिंदुस्तान का नहीं है,लोकतंत्र को इस तरह की घटिया हरकतों के जरिये शर्मसार न किया जाए।
वो सच ही कह रहे थे कि "हम राजनीती करने नहीं , इसे बदलने आये है" वाकई राजनीति तो बदल दी इन्होने वर्ना कभी न देखा था किसी पार्टी के अध्यक्ष को 20 दिनों के अंदर 5 बार भीड़ में थप्पड़ खाते हुए ,या किसी S.H.O. द्वारा राज्य के कानून मंत्री को औकात में रहने की हिदायत देते हुए। हाँ हमने देखा था काशीराम जी को एक पत्रकार पर हाथ उठाते हुए ,हमने देखा था अफसरों को मंत्रियों के जूते साफ़ करते हुए पर पब्लिक से थप्पड़ या जूते खाने का मौका तो नेताजी को जीवन में सिर्फ एक ही बार मिलता था ,चाहे हुड्डा साब हो या चिदम्बरम जी ,मुझे तो याद नहीं कि अरविन्द से पहले किसी भी नेता पर इतने हमले हुए हो।चुनावी आचार संहिता लागु होने के दिन ही इतना ज्यादा उपद्रव हुआ था तो प्रचार के दौरान ऐसे थप्पड़ मुक्के चलना स्वाभाविक ही था परन्तु गौर करने लायक बात ये है कि सारे हमले सिर्फ एक ही लीडर पर हुए और वजह दी गयी वादे पूरे न करना,
इस देश के वोटर ऐसे तो कभी नहीं थे ,वर्ना वादों के नाम पर अगर थप्पड़ बरसते तो अपने सारे सांसदों और विधायकों के गालों पर आज अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों की दी हुई निशानियाँ होती। इस सब के पीछे चाहे कोई राजनीतिक साजिश हो या कोई और वजह, पर है तो ये एक तरह कि कायरता ही, जब हमारा संविधान हमें खुद हमारा नेता चुनने का हक़ देता है तो चुनाव से पहले ऐसी हिंसा शर्मनाक है।
ये स्याही ,अंडे और थप्पड़ का कल्चर हमारे हिंदुस्तान का नहीं है,लोकतंत्र को इस तरह की घटिया हरकतों के जरिये शर्मसार न किया जाए।
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