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कलमक्रान्ति : January 2014

अपने आजाद विचार,व्यंग्य या सुझाव रखने के लिए इस ब्लॉग पर मुझे या आपको कोई मनाही नहीं है
-कलमक्रान्ति

Wednesday, January 29, 2014

राजनीतिक दल दुकान बन गए है?

कल कहीं ये ना पूछना पड़े की - क्या राजनीतिक  दल दुकान बन गए है, रवीश कुमार सर  ने इस सवाल के साथ आज का प्राइम टाइम समाप्त कर दिया परन्तु मेरे जैसे फोकट प्राणियों के लिए इस देश के भविष्य की राजनीति के कुछ भयानक और मजेदार दृश्य छोड़ दिए जिसमे देशभर के 790 (545+245) परिवारो को अनिश्चित काल के लिए स्थायी रोजगार दिया गया होगा, लोकसभा क्षेत्रों के स्थान  पर लोकसभा परिवार होंगे - गांधी परिवार , यादव परिवार , बादल लोकसभा तो कहीं  चौटाला  लोकसभा , कहीं ठाकरे लोकसभा तो कहीं सिंधिया लोकसभा। सबकी दुकाने होगी संसद वाले मॉल में। चुनाव का तो नामोनिशान ही लगभग मिट जाएगा , अगर कहीं चुनाव होंगे भी तो वो होंगे अन्तरापरिवार चुनाव, जो इन्ही 790 परिवारों में किसी परिवार में  एक समय में एक से ज्यादा बेरोजगार संतानों के होने पर  होगा। राजनीती अगर इसी ढर्रे पर बढ़ती रही तो खैर वो दिन दूर नहीं जब मेरी इन कल्पनाओं में से कुछ सही हो जायेगी , इतिहास कि किताबों में लोदी वंश या तुगलक वंश की जगह बादल वंश या गांधी वंश ले लेंगे।
तो बात वंशवाद की हो रही थी, बड़े बड़े पार्टी  प्रवक्ता खुद के दामन में झांके बगैर विपक्षियों पर जो प्रहार कर रहे थे वो निश्चित रूप से उनके डिबेट में आने से पहले किये हुए होमवर्क को दर्शा रहा था।
जब रवीश सर कांग्रेस वाले साब से कन्नोज में उम्मीदवार खड़ा न करने की वजह पूछते है तो वो बोलते है कि
"समाजवादी पार्टी ने भी तो कुछ जगहों पर हमारे खिलाफ उम्मीदवार नहीं खड़े किये"
यही हाल हमारी प्यारी भाजपा का है , उनके प्रत्याशी भी कन्नोज में नामांकन नहीं कर पाते।
महाराष्ट्र से आये राउत सर बोलते है -" वंशवाद तो हमारे बॉलीवुड में भी है ही "
तो सर सिनेमा  में जो वंशवाद है वो कम से कम इस देश को प्रभावित तो नहीं करता , अभिषेक बच्चन कि फ़िल्म कोई इसलिए जाकर नहीं देखता क्यों कि वो अमिताभ बच्चन सर के पुत्र है। फरहान अख्तर को बेस्ट एक्टर इसलिए नहीं मिलता क्यूंकि उनके पिता जावेद अख्तर है , ऐसे उदाहरण तो अनेकों है पर आप नेता लोगो को समझाने के लिए तो कम ही है।


जैसा कि रवीश सर कहते है -" गलती हो सकती है , होनी भी चाहिए ", तो अगर किसी को मेरे विचार गलत लगे तो कृपया माफ़ करें।
सभी तरह की  आलोचनाओं का स्वागत है , अपने मूल्यवान कमेंट्स देने से हिचके नही। …

Thursday, January 2, 2014

राजनीति- टोपी ,झाड़ू और आम आदमी

मैं ईश्वर कि शपथ लेता हु कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सची श्रद्धा और निष्ठां रखूँगा , मैं भारत कि प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा। 
इसी शपथ के साथ एक आम आदमी और उसके कुछ  साथी राजधानी में सत्ता पर काबिज़ हो गये। 
राजनीतिक  दिग्गज  जो कुछ दिन पहले तक इस आम आदमी को बरसाती कीड़ा बोल रहे थे, उसी कीड़े ने
रामलीला मैदान से अपना संघर्ष शुरू किया और आज दिल्ली विधानसभा तक पहुँच गया है। इस कीड़े ने तमाम राजनीतिक पंडितों की  आँखों पर लगी अहंकार और गलतफहमी की  पट्टी कुतर डाली। अहंकार तो उनको हो गया था जो 15 साल से कुर्सी गरम कर रहे थे और गलतफहमी में कुछ वो लोग थे जो किसी की लहर के ही भरोसे बैठे थे।
कुछ बात तो है ही इस आम आदमी में जो नमो इसके खिलाफ कुछ भी बोलने का जोखिम नहीं उठाना चाहते  और रा.गा.  पहले ही बोल चुके  है की हमें आम आदमी पार्टी से सीखने की जरुरत है।
 देश बदल रहा है, राजनीति बदल रही है -ये मोदी कि लहर नहीं केजरीवाल कि आंधी चल रही है।
 ये आम आदमी अब रुकने वाला नहीं है,इसकी मजबूरी को इसकी कमजोरी समझकर हर बार इसके साथ अन्याय हुआ,लोकतंत्र और राजनीती कि परिभाषा ही बदल दी गयी, लेकिन अब और नहीं। राजनीती की गन्दगी साफ़ करने के लिए अब झाड़ू थाम ली है आम आदमी ने। रामलीला मैदान से निकल कर ये झाड़ू और टोपी वाले रायसिन्हा हिल के लिए चल निकले है। कागजों पर भले ही रामलीला मैदान से रायसिन्हा हिल के बीच की दूरी 30 किलोमीटर हो पर असल में ये रास्ता पुरे देश के कोने कोने में से होकर निकलेगा।
  सत्ता के गलियारों में तूफ़ान बन कर आया ये आम आदमी राजनीति को मंदिर , मस्जिद,  जाति और धर्म से ऊपर उठाकर बिजली , पानी , गरीबों और महिलाओं की सुरक्षा तक ले आया है।
देश की राजनीति में इस सकारात्मक बदलाव का खुले दिल से स्वागत  करते हुए , आशा करता हूँ की आम आदमी अपने उसूलों और शपथ के एक एक शब्द का सम्मान करेगा और भविष्य में  आम से ख़ास होने के बाद भी दिल से हमेशा  आम आदमी ही रहेगा। 
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