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कलमक्रान्ति : सियासत फिर जीत गयी, आंदोलन हार गया...

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-कलमक्रान्ति

Friday, January 23, 2015

सियासत फिर जीत गयी, आंदोलन हार गया...

जे पी की तरह अन्ना के भी सभी चेलों का प्लेसमेंट हो गया ( FYI : प्लेसमेंट हमारी इंजीनियरिंग के फर्स्ट ईयर और फोर्थ ईयर में सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जाने वाला शब्द है ),
ताज़ा प्लेसमेंट किरण बेदी जी का हुआ है। अन्ना के इंडिया अगेंस्ट करप्शन के 2011 बैच के श्रेष्ठतम विद्यार्थियों में से एक किरण जी का अचानक ह्रदय परिवर्तन हुआ, नतीजतन वो अभी भाजपा में प्लेस हुई है   , वैसे अरविन्द , वी के सिंह , विश्वास ,सिसोदिया ,शाजिया जैसे होनहारों का प्लेसमेंट तो काफी पहले हो ही गया था। कोई झाड़ू तो कोई कमल वाली कंपनी में प्लेसमेंट करवा के उम्मीदों के बड़े भारी पैकेज लेकर बैठा है। 
तक़रीबन 40 साल पहले 1974 में जयप्रकाश नारायण (जे पी ) के पूर्ण स्वराज आंदोलन से निकले लालू यादव , नीतीश कुमार ,रविशंकर प्रसाद जैसे नेताओं को सियासत में अपने पैर जमाने में इतना समय लग गया जब कि ट्वेंटी ट्वेंटी के इस दौर जिस फुर्ती से अन्ना के चेलों ने रन बटोरे है उसका अंदाजा तो इसी से लगता है कि राजधानी में चुनाव कोई भी जीते , मुख्यमंत्री अन्ना के ही चेलों में से ही कोई होगा। 
भले ही अरविन्द सबसे ईमानदार नेता हो , भले ही किरण सबसे अच्छी मुख्यमंत्री साबित हो लेकिन जब अरविन्द बोलते है कि हमसे गलती हो गयी , किरण बेदी या शाज़िआ सरीखे लोगो के अचानक हृदय परिवर्तन हो जाते है, सब आपस में आरोप प्रत्यारोप करते है तो बार बार ये ख्याल आता है की एक बार फिर राजनीति जीत गयी ,आंदोलन हार गया। 4 साल पहले जंतर मंतर पर जो उम्मीद जगी थी ,उसकी धज्जिया उड़ती दिखती है।  
अरविन्द , किरण, सिसोदिया या शाज़िआ तो अभी भी सुर्ख़ियों में है , पर अन्ना और उनका लोकपाल सब भूल गए है। सब एक दूसरे के पुराने ट्वीट्स और बयान निकाल कर ला रहे है ,पता नहीं पुराने उसूलों पर कब ध्यान जाएगा। 
खैर जो भी हो , एक बात ये भी है कि दिल्ली के लोगो के पास मुख्यमंत्री के लिए इनसे अच्छे विकल्प नहीं हो सकते थे। 


" सियासत फिर जीत गयी, 
आंदोलन पुनः हार गया, 
कुर्सी का वो  कीड़ा 
उसूलों को डकार गया 
तब जेपी हारा था अब अन्ना हारा है 
राजनीति के इस जंगल में 
आज भी लोकतंत्र ही बेचारा है  "



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