Face Upward - Widget
कलमक्रान्ति : 2018

अपने आजाद विचार,व्यंग्य या सुझाव रखने के लिए इस ब्लॉग पर मुझे या आपको कोई मनाही नहीं है
-कलमक्रान्ति

Sunday, October 7, 2018

भारत का अपना #MeToo आ गया है ....

धन्यवाद तनुश्री,
पर्दा उठाने के लिए, 
साहस जुटाने के लिए,
जवाब देने के लिए,
और हर एक उस औरत की लड़ाई लड़ने के लिए जो अपने भविष्य को बचाने के लिए इस पुरुष प्रधान समाज के शोषण का शिकार होती आई है। 
भारत का अपना #MeToo देर आया पर दुरुस्त आया। प्रयास पहले भी काफी हुए पर मीडिया की उपेक्षा और समाज के पाखंडी पक्षपाती रवैये के आगे टिक न सके। हर बार की तरह इस बार भी जब एक पीडिता(तनुश्री) ने आवाज उठाई तो मीडिया/समाज ने वही प्रश्न किया : "10 सालों तक कहाँ थी तुम ?"
पर सौभाग्य वश या संयोग वश, तनुश्री के पास इसका जवाब था। उन्होंने समाज के खोखलेपन को आईना दिखाते हुए बता दिया की 10 सालों तक वे यहीं थी, आवाज पहले भी उठाई थी परन्तु आरोपी का वर्चस्व, पीडिता के आत्मसम्मान पर हावी हो गया था। 
तनुश्री की जलाई मशाल को अनेकों पीड़िताएं आगे से आगे सौंपती जा रही है, और ये मशाल न सिर्फ पीड़िताओ को अपना दर्द बयां करने की हिम्मत दे रही है बल्कि 'सदी के महानायक' कहे जाने वाले अमिताभ जैसे लोगो को भी बेनकाब कर रही है। बॉलीवुड से आगे निकल कर ये मशाल अब पत्रकारिता, कॉमेडी, लेखन के क्षेत्रों में से भी भद्दे घिनौने कारनामों को सबके सामने ला रही है। 
हमारे साथ दिक्कत यह है की किसी के निभाये किरदार या बेहतरीन काम से हम उसकी एक इमेज बना लेते है, जिसके चलते जब इन पर आरोप लगते है तो सवाल  हमेशा पीड़ित/पीडिता से पूछे जाते है। 
द वाइरल फीवर, आल इंडिया बक्चोद, फेंटम...ये सब इस ऑनलाइन दौर के बेहतरीनतम प्लेटफॉर्म्स में शुमार है जिन्होंने रंगभेद(racism),लिंगभेद(sexism),जातिवाद(casteism), बॉडी शेमिंग जैसे अनेक संवेदनशील मुद्दों पर लाखों युवाओं को जागरूक किया। पर यह अजीब विडम्बना है की जब इन्ही में से कोई अरुणाभ कुमार, उत्सव चक्रवर्ती या विकास बह्ल निकल कर आता है तो ये भी उसी समाज के जैसा रवैया दिखाते है जिसके खोखलेपन को उजागर कर इन्होने अपना नाम बनाया है। 
समाज की गन्दगी समाज के लोगो को अंदर से ही साफ़ करनी होगी। सरकारे या कोर्ट, ज्यादा से ज्यादा बस अपराधियों को सजा दे सकते है, इन हरकतों के भविष्य में न होने की गारंटी नहीं दे सकते। सरकार यौन उत्पीडन कानून ले कर आई, सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइन्स दी पर समाज की ये गंदगी ज्यों की त्यों है। सामजिक बदलाव समाज के अंदर से ही संभव है। 
सलाम है तनुश्री, महिमा कुकरेजा, कंगना रनौत और अनगिनत ऐसी महिलाओं का जो समाज को बेहतर बनाने के लिए इस पुरुष प्रधान समाज को न सिर्फ चुनौती दे रही है, बल्कि इसके खोखलेपन को जगजाहिर भी कर रही है।


there are decades where nothing happens; and there are weeks where decades happen

                                                                                                                                       - Vladimir Lenin

(शायद इन्ही कुछ हफ़्तों में हिंदुस्तान की महिलाएं अपने आत्मसम्मान  और समानता की लड़ाई में वो  सब पाएगी  जिसकी मुराद वे दशकों से करती आयी है )
 #TimesUp 

Sunday, September 16, 2018

The father abuse

Sharing a wonderfully written article which is primarily a father's rant  towards the atrocities by his toddler but covers sarcastically some of the current socio political situations in the country.

https://www.thehindu.com/opinion/columns/bringing-up-wrecking-ball/article24956452.ece

Friday, April 27, 2018

अनुभव by a guest writer


आसिफा ..... इस लडकी की कहानी पढ़ी मन को झकझोर देने वाली और इस सम्बन्ध में हरकोई यही सोचने को मजबूर है की आज मानवता कहाँ खो गयी है ? इसी बारे में विचार करती हुई एक अजीब सी पीड़ा का अनुभव कर रही हूँ.... 
आसिफा निर्भया मुझे लगता है तुम शहीद हुई हो और शायद तुम्हारी शहादत से ये समाज ये देश थोडा जागृत हो जाए जो लम्बे समय से गहरी नींद में सोया है। 
एक सैनिक जब शहीद होता है तो वो अपनी मर्जी से मौत का आलिंगन करता है आखिरी सांस तक मातृभूमि के रक्षार्थ डटा रहता है पर तुम, तुम्हे तो तडपा तडपा कर मारा गया , पल पल मारा गया। तुम जब घर से निकली तो तुम्हे अंदेशा भी नहीं रहा होगा की तुम्हारे साथ कुछ ऐसा होगा . तुम मरना नहीं चाहती थी. पर ....
आज इन सब पर विचार करते हुए अतीत की कुछ बुरी यादो से धूल सी हट रही है . ये यादे आज मुझे बुरी लग रही है पर उस वक्त जब ये सब कुछ मेरे साथ घट रहा था तब मुझे अच्छे बुरे की पहचान नहीं थी। 
एक 6-7 साल की नासमझ लडकी थी जिसे अच्छे बुरे, सही गलत की पहचान नहीं थी, स्कुल के पास एक घर जिसमे गुलाब के फूल थे लेने चली जाती थी, कुछ सहेलियों के साथ, उस घर में रहने वाले 2 लड़के अक्सर डांट कर भगा दिया करते थे। एक दिन जब हम सब फूल लेने गए तो बाकी सहेलियां घर तक आकर वापिस चली गयी, ये कहकर की लड़के डांटेंगे.. और उनकी बात न मानकर मैं फूल लेने घर के अंदर गयी... घर में उस दिन वो दो लड़के नहीं थे, घर में उनके पिता जो उम्र में मेरे दादाजी से थोड़े ही छोटे होंगे , बैठे थे .
मैंने पूछा मैं गुलाब के फूल ले लूँ तो उन्होंने खुद मुझे फूल तोड़कर दिए, मैं खुश हो गयी, एक हाथ में सब फूल थे और दूसरा हाथ उन्होंने मेरा पकड़ा और एक कमरे में ले गए। उन्होंने मुझे जोर से पकड़ा और कहा : “ बेटा जब मन करे , यहाँ से फूल ले जाया करो " , मैंने भी हाँ में गर्दन हिलाई, वो मुस्कराए और मेरे प्राइवेट पार्टस को उन्होंने छुआ . मेरे लिए असहज था और कुछ समझ नहीं पाई, अच्छा नहीं लगा तो मैंने हाथ छुडवाने की कोशिश की और कहा मुझे स्कूल जाना , घंटी बजने वाली है और फूल फेंक कर वहाँ से भाग गयी। 
फिर उन्ही दिनों एक शादी में जाना हुआ, परिवार के साथ . आँगन में बैठे थे तभी किसी औरत ने मुझसे कहा- “ बेटा ऊपर छत से चाट ले आओ मेरे लिए “...... छत पर सिर्फ 3 आदमी ही थे, मैंने पुछा तो उन अंकल ने कोने में बैठे एक डरावने से आदमी से जाकर लेने को बोला, मैं गयी तो उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठा लिया और पुछा “चाट चाहिए... ?” मैंने जब हाँ में गर्दन हिलाई तो मुझे गाल पर सहलाया , और वहीँ छुआ जहां पिछली बार उस अधेड़ उम्र के आदमी ने छुआ था . असहज हुई मैं, गोद से उतरी और इस बार भी वहां से भागकर नीचे आ गयी। 
फिर ऐसी ही हरकत मेरे पड़ोस के एक अंकल ने मेरे साथ की .....
तीन बार मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत हुई , बलात्कार नहीं हुआ .....पर .....सही नहीं है ,ये समाज, ये लोग, बहुत घटिया है...
काश मेरे परिवार में किसी ने मुझसे कभी खुल कर बात की होती। 
आज मेरी उम्र 25 साल है, सब जानती हूँ, समझती हूँ .
समाज की गन्दगी को दूर करना होगा, पर समझ नहीं आता कैसे .....?
(शायद अपना अनुभव साझा करने से ही शुरुआत हो जाए....चुप तो इतने सालों से थी, समाज बद से बद्तर होता चला गया, अब आवाज उठाने की कोशिश तो की है ...)

- by one among the many silent victims of harassment 


----------------------------------------------------------------------

कलमक्रांति -
यह अनुभव किसी पाठक ने साझा किया, जो हमारे इस घटिया समाज की नीच नियत को जाहिर कर रहा है , ये बलात्कारी हमारे ही समाज में पनप रहे है और हमारी खामोशी इनकी ऑक्सीजन बनी हुई है। 
किसी बीमारी को मिटाने के लिए उस के बारे में बात करना पहले जरुरी है और अब बात करनी पड़ेगी। यौन उत्पीड़न को हमारे समाज से मिटाने के लिए अब आवाज उठानी पड़ेगी। 
आसिफा का  मंदिर में और गीता का किसी मदरसे में बलात्कार हो गया है , भगवान् या अल्लाह को कुछ करना होता तो अभी तक कर लेते, अब समाज हमें खुद ही बदलना होगा। 


Thursday, April 12, 2018

भारत माँ, निर्भया और आसिफा


"Patriotism is the last refuge of a scoundrel"


"राष्ट्रवाद ही निक्रिष्टों का अंतिम सहारा है"


सेमुएल जॉनसन द्वारा आज से  करीबन  ढाई सौ साल पहले बोले गए ये शब्द जीवंत हो उठे जब भारत माता की जय के नारे लग रहे थे भारत माँ की ही बेटी के बलात्कार के आरोपी को बचाने के लिए। अबिन्द्र नाथ टैगोर ने कभी न कल्पना की होगी कि उनकी बनाई भारत माँ  एक दिन कुछ जाहिलों को बचाने के लिए काम में ली जायेगी।

जो लिखने, पढने में शर्म आ जाए ऐसे अपराध उस आठ साल की बच्ची के साथ कठुआ में  किये गए है,  इंडियन एक्सप्रेस में छपी चार्जशीट पढने के बाद अगर आप की रूह न काँप जाए तो अपने अंदर के इंसान को टटोल कर देख लेना, हो सकता है मर गया हो इस देश की दुर्गति देख कर।  तिरंगा , श्रीराम , हिंदुत्व , भारत माँ , मजहब सब मैदान में आ गए है पर इंसानियत काफी पीछे छूट गयी है।  गिद्धों की तरह उस मासूम की लाश को नोच रही है ये राजनीति अब।  
सरकार के मंत्री आरोपी के समर्थकों से मिलकर चले आते है पर उस मासूम बच्ची के परिवार को सांत्वना देने का वक़्त नहीं निकाल पा रहे है। उत्तरप्रदेश में बेटी का बलात्कार कर दिया गया और पिता की मृत्यु पुलिस हिरासत में हो गयी है , जब की आरोप स्थानीय विधायक पर है।   राजनीति गन्दी हमेशा से थी, अब घिनौनी भी हो गयी है। ये समाज, सरकार, कानून, संविधान सब निरर्थक है, बेकार है अगर ऐसे ही कभी कोई निर्भया तो कोई आसिफा बनती रही। 
अंदर का नौजवान इस सब में वक़्त जाया न कर अपने करियर और इम्तिहानो की तैयारी करने को सोचता है लेकिन मैं किसी का भाई हूँ, बेटा भी हूँ, आसिफा जैसी ही मासूम छोटी छोटी लड़कियां मुझे चाचा मामा या भैया बोलती है, डर लगता है अब...... अपने करियर की चिंता से कहीं ज्यादा उन की हिफाजत का डर है। हमारा रूढ़िवादी पुरुषप्रधान  समाज एक तो पहले ही बेटियों को बाँध के रखे  हुआ था , अब हाल ऐसी ही दरिंदगी का चलता रहा तो कैसे कोई पिता अपनी बेटी को पढ़ने जाने देने का साहस जुटा पायेगा। 

समाज विकृत होने का उलाहना कब तक देंगे, हर बार सरकार लापरवाह और नेता गैरजिम्मेवार बोलकर हम कब तक अपनी बारी न आने की खैर मनाते रहेंगे ?
फिल्मी डायलॉग है पर यहां बोलना जरुरी है: "कोई देश परफेक्ट नहीं होता, उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है"  ये देश एक लोकतंत्र है,लोकतंत्र में सरकारों की जवाबदेही तय करने के नाना तरह के अधिकार जनता के पास होते है, हमारे पास भी है।  अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है आपके पास , मंच सोशल मीडिया देता है भरपूर उपयोग करे। शांतिपूर्वक सम्मलेन और प्रतिवाद का अधिकार भी है , अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाएं , अपनी आने वाली पीढ़ी के अधिकारों की सुरक्षा  के लिए आवाज उठाए।  
वर्ना हमारा आज का नपुंसत्व कल किसी और आसिफा की मौत की वजह बनेगा।

"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध"
-दिनकर




Face Upward - Widget