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कलमक्रान्ति : धुंए में उड़ती जिन्दगी

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-कलमक्रान्ति

Wednesday, April 2, 2014

धुंए में उड़ती जिन्दगी

आज कॉलेज से हॉस्टल आते वक्त पैरों में रहे सड़क पर पड़े कचरे पर नज़र डाली तो अधबुझी सिगरेट और उनके खाली पैकेट्स के अलावा कोई इक्का दुक्का ही अलग कचरा दिखा होगा। गौर से देखा तो पैकेट के ऊपरी भाग में ब्रांड के नाम के बाद शेष बचे दो तिहाई भाग में काले हुए फेंफड़े और गला दिखाया गया था और भविष्य में कैंसर के खतरे से आगाह भी किया गया था , तक़रीबन 6 फुट ऊपर से भी मेरा चश्मा सड़क पर पड़े इस पैकेट पर लिखी कैंसर की चेतावनी दिखा रहा था, पता नहीं इसे इस्तेमाल करने वाले कैसे इसे नजरअंदाज कर देते है।  
कॉलेज में तो टोबैको फ्री कैंपस के बोर्ड लगे है जिनकी प्रमाणिकता पर कोई संदेह नहीं है पर कैंपस की चारदीवारी से दो कदम बाहर जो रखे तो अपनी जवानी और भविष्य को सिगरेट के धुंए में उड़ाते हुए वो ब्रांडेड टीशर्ट पहने कानों में इयरफ़ोन डाले 'कूल ड्यूड्स' दिखाई देते है जिनको इस बात का कोई इल्म ही नहीं है कि घर से रोज़ फ़ोन करने वाली उनकी माँ को आज भी ये लगता है कि उसका बेटा  आज भी एल्पेनलिब्बेल खाता है और फ्रूटी पीता  है। 

खैर समाज बदल रहा है, बदलते समाज में जहां एक ओर ये जवान लड़के लडकियां भ्रष्टाचार ,गुंडागर्दी या दहेज़ जैसी रूढ़िवादी परम्पराओं के खिलाफ आवाज उठा रहे है वहीँ एक सच ये भी है कि इनके लिए सिगरेट शराब जैसी चीज़ें फैशन बन गयी है। 

अपने विचारों को व्यक्त करने में अगर यहाँ मैंने किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है तो इसके लिए मुझे कोई खेद नहीं है क्योंकि मैं नहीं समझता कि सिगरेट के कश में अपनी जिंदगी उड़ाना किसी समस्या का समाधान है या किसी तरह का फैशन स्टेटमेंट है।    


अंत में गुलजार साहब की दो पंक्तियाँ
"मैं सिगरेट तो नहीं पीता पर हर आने वाले से ये पूछ लेता हूँ - माचिस है क्या?
मैं सिगरेट तो नहीं पीता पर हर आने वाले से ये पूछ लेता हूँ - माचिस है क्या?
क्यूंकी ऐसा बहुत कुछ है जिसे मैं जला देना चाहता हूँ "

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