Face Upward - Widget
कलमक्रान्ति : अनुभव by a guest writer

अपने आजाद विचार,व्यंग्य या सुझाव रखने के लिए इस ब्लॉग पर मुझे या आपको कोई मनाही नहीं है
-कलमक्रान्ति

Friday, April 27, 2018

अनुभव by a guest writer


आसिफा ..... इस लडकी की कहानी पढ़ी मन को झकझोर देने वाली और इस सम्बन्ध में हरकोई यही सोचने को मजबूर है की आज मानवता कहाँ खो गयी है ? इसी बारे में विचार करती हुई एक अजीब सी पीड़ा का अनुभव कर रही हूँ.... 
आसिफा निर्भया मुझे लगता है तुम शहीद हुई हो और शायद तुम्हारी शहादत से ये समाज ये देश थोडा जागृत हो जाए जो लम्बे समय से गहरी नींद में सोया है। 
एक सैनिक जब शहीद होता है तो वो अपनी मर्जी से मौत का आलिंगन करता है आखिरी सांस तक मातृभूमि के रक्षार्थ डटा रहता है पर तुम, तुम्हे तो तडपा तडपा कर मारा गया , पल पल मारा गया। तुम जब घर से निकली तो तुम्हे अंदेशा भी नहीं रहा होगा की तुम्हारे साथ कुछ ऐसा होगा . तुम मरना नहीं चाहती थी. पर ....
आज इन सब पर विचार करते हुए अतीत की कुछ बुरी यादो से धूल सी हट रही है . ये यादे आज मुझे बुरी लग रही है पर उस वक्त जब ये सब कुछ मेरे साथ घट रहा था तब मुझे अच्छे बुरे की पहचान नहीं थी। 
एक 6-7 साल की नासमझ लडकी थी जिसे अच्छे बुरे, सही गलत की पहचान नहीं थी, स्कुल के पास एक घर जिसमे गुलाब के फूल थे लेने चली जाती थी, कुछ सहेलियों के साथ, उस घर में रहने वाले 2 लड़के अक्सर डांट कर भगा दिया करते थे। एक दिन जब हम सब फूल लेने गए तो बाकी सहेलियां घर तक आकर वापिस चली गयी, ये कहकर की लड़के डांटेंगे.. और उनकी बात न मानकर मैं फूल लेने घर के अंदर गयी... घर में उस दिन वो दो लड़के नहीं थे, घर में उनके पिता जो उम्र में मेरे दादाजी से थोड़े ही छोटे होंगे , बैठे थे .
मैंने पूछा मैं गुलाब के फूल ले लूँ तो उन्होंने खुद मुझे फूल तोड़कर दिए, मैं खुश हो गयी, एक हाथ में सब फूल थे और दूसरा हाथ उन्होंने मेरा पकड़ा और एक कमरे में ले गए। उन्होंने मुझे जोर से पकड़ा और कहा : “ बेटा जब मन करे , यहाँ से फूल ले जाया करो " , मैंने भी हाँ में गर्दन हिलाई, वो मुस्कराए और मेरे प्राइवेट पार्टस को उन्होंने छुआ . मेरे लिए असहज था और कुछ समझ नहीं पाई, अच्छा नहीं लगा तो मैंने हाथ छुडवाने की कोशिश की और कहा मुझे स्कूल जाना , घंटी बजने वाली है और फूल फेंक कर वहाँ से भाग गयी। 
फिर उन्ही दिनों एक शादी में जाना हुआ, परिवार के साथ . आँगन में बैठे थे तभी किसी औरत ने मुझसे कहा- “ बेटा ऊपर छत से चाट ले आओ मेरे लिए “...... छत पर सिर्फ 3 आदमी ही थे, मैंने पुछा तो उन अंकल ने कोने में बैठे एक डरावने से आदमी से जाकर लेने को बोला, मैं गयी तो उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठा लिया और पुछा “चाट चाहिए... ?” मैंने जब हाँ में गर्दन हिलाई तो मुझे गाल पर सहलाया , और वहीँ छुआ जहां पिछली बार उस अधेड़ उम्र के आदमी ने छुआ था . असहज हुई मैं, गोद से उतरी और इस बार भी वहां से भागकर नीचे आ गयी। 
फिर ऐसी ही हरकत मेरे पड़ोस के एक अंकल ने मेरे साथ की .....
तीन बार मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत हुई , बलात्कार नहीं हुआ .....पर .....सही नहीं है ,ये समाज, ये लोग, बहुत घटिया है...
काश मेरे परिवार में किसी ने मुझसे कभी खुल कर बात की होती। 
आज मेरी उम्र 25 साल है, सब जानती हूँ, समझती हूँ .
समाज की गन्दगी को दूर करना होगा, पर समझ नहीं आता कैसे .....?
(शायद अपना अनुभव साझा करने से ही शुरुआत हो जाए....चुप तो इतने सालों से थी, समाज बद से बद्तर होता चला गया, अब आवाज उठाने की कोशिश तो की है ...)

- by one among the many silent victims of harassment 


----------------------------------------------------------------------

कलमक्रांति -
यह अनुभव किसी पाठक ने साझा किया, जो हमारे इस घटिया समाज की नीच नियत को जाहिर कर रहा है , ये बलात्कारी हमारे ही समाज में पनप रहे है और हमारी खामोशी इनकी ऑक्सीजन बनी हुई है। 
किसी बीमारी को मिटाने के लिए उस के बारे में बात करना पहले जरुरी है और अब बात करनी पड़ेगी। यौन उत्पीड़न को हमारे समाज से मिटाने के लिए अब आवाज उठानी पड़ेगी। 
आसिफा का  मंदिर में और गीता का किसी मदरसे में बलात्कार हो गया है , भगवान् या अल्लाह को कुछ करना होता तो अभी तक कर लेते, अब समाज हमें खुद ही बदलना होगा। 


No comments:

Post a Comment

Face Upward - Widget