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कलमक्रान्ति : 2014

अपने आजाद विचार,व्यंग्य या सुझाव रखने के लिए इस ब्लॉग पर मुझे या आपको कोई मनाही नहीं है
-कलमक्रान्ति

Tuesday, December 30, 2014

धर्म के ठेकेदार


देश में ये हो क्या रहा है?
लव जिहाद की पागलपन्ति अभी थमी ही थी कि धर्मांतरण व घर वापसी जैसे मुद्दे महंगाई और अर्थव्यवस्था की चर्चाओं पर हावी हो गए।  
जिस आग से आर एस एस , वि एच पि और बजरंग दल खेल रहे है उसके खतरों से शायद वो खुद वाकिफ नहीं है , आज ही के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में खबर छपी है कि यूपी के ढांगर समुदाय के लोगो ने सरकार को ये धमकी दी है कि उन्हें शिड्यूल्ड कास्ट के सर्टिफिकेट जारी किये जाए वर्ना ढांगर समुदाय के 1.2 लाख लोग ईसाई धर्म अपना लेंगे , ये आर एस एस और वी एच पी जैसे हिन्दू धर्म के ठेकेदारों की ही लगाईं आग का नतीजा है कि कोई भी मुंह उठाकर चला आ रहा और लाखो की तादात में धर्मांतरण की धमकियां दे रहा है। इस देश में जब साक्षी महाराज और योगी आदित्यनाथ जैसे लोग संसद में पहुँच गए है तो धर्म के नाम पर ऐसी धमकियां मिलने की ही कमी बाकी रह गयी थी ,जो कि आज ये ढांगर समुदाय पूरी कर रहा है। कल कोई फलाँ जाति आएगी और परसों कोई ढिमका सम्प्रदाय,निजी फायदे और वोट बैंक की राजनीति के लिए देश की विविधता को यूँ ही हाशिये पर धकेल दिया जाएगा और सेकुलरिज्म की धज्जियाँ उड़ा दी जायेगी । 
बिहार में कुछ सालों पहले धर्म परिवर्तन करके हिन्दू से ईसाई बने लोगो को धमकियां मिल रही है। तोगड़िया बोल रहे है देश को शत प्रतिशत हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे ,बजरंग दल वाले मूवी थिएटर्स में उत्पात मचा रहे है। इन सब को देख कर लग तो यही रहा है कि हिन्दू धर्म की रक्षा का पूरा ठेका इन्ही को मिला है।  
नाथूराम गोडसे को बीजेपी के ही एक सांसद सरेआम देशभक्त बोल रहे है , कुछ सिरफिरे गोडसे की मूर्तियां बना कर बैठे है और मंदिर बनवाने की बात कर रहे  है। कुछ महीने पहले आर एस एस की ही एक पत्रिका में छपे लेख में कहा गया की गोडसे को गांधी की बजाय नेहरू को मार देना चाहिए था। क्या ऐसे बयानों और लेखों को बिना किसी कार्यवाही के नजरअंदाज कर देना गांधी नेहरू जैसे उन तमाम देशभक्तों का अपमान नहीं है जिन्होंने इस देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।  
मेक इन इंडिया ,स्वच्छ भारत अभियान और मन की बात जैसे सरकार के  कदम काबिले तारीफ़ है पर क्या गोडसे , संघ और धर्म के ठेकेदारों पर सरकार कुछ ज्यादा ही मेहरबान नहीं हो रही ? 125 करोड भारतीयों ने मिलकर इस सरकार और प्रधानमन्त्री को चुना है न कि किसी आर एस एस या वी एच पी ने। धर्म के इन ठेकेदारों पर अगर अभी नकेल नहीं कसी गयी तो भविष्य में ये इस देश और सरकार दोनों को ले डूबेंगे---
लम्हों ने खता की है , सदियों ने सजा पाई है। 

Saturday, November 22, 2014

(33 करोड़ )+1

33 करोड भगवान पहले से ही  है, एक और सही।
वही एक जो आजकल अखबारों की हैडलाइन और समाचार चैनलों के प्राइम टाइम का मसाला बना हुआ है , संत रामपाल के नाम से सुर्ख़ियों में छाया हुआ ये तथाकथित परमात्मा  जो महिलाओं और बच्चों को ढाल बना कर 3 दिन तक हरियाणा पुलिस और सरकार के तमाम इंतजामात की धज्जियाँ उडाता रहा ,अब जेल  की सलाखों के पीछे अपने अंदर के भगवान को ढूंढ रहा है। इन महाशय का इरादा तो था 33 करोड़ देवी देवताओं वाली सूची में अपना नाम दर्ज करवाने का ,पर फिलहाल तो इनका नाम नित्यानंद और आसाराम वाली फेहरिस्त की शोभा बढ़ा रहा है। 
67 साल पुरानी आजादी और 64 साल पुराने लोकतंत्र को इस एक इंसान ने कटघरे में ला खड़ा किया है। पूरी शासन व्यवस्था को धत्ता बताते हुए कब  लापरवाही की वजह से नौकरी से निकाला  गया एक इंजीनियर कबीर का अवतार बन गया ,सियासतदानों और चौबीसों घंटे चालु रहने वाले मीडिया को खबर ही नहीं लगी। 21वीं सदी का हिंदुस्तान जो एक तरफ मंगल की सतह पर सफलता पर झंडे गाड़ रहा है ,वहीँ दूसरी ओर रामपाल जैसे स्वघोषित अवतारों की इन हरकतों से शर्मसार है। 
 रामपाल जैसे अवतारों का इतना प्रसिद्ध हो जाना अपने आप में हमारी काबिलियत पर भी एक सवाल है ,हम जो खुद को समाज के पढ़े लिखे तबकों में गिनते है। हम देश की जी डी पी , इकॉनमी , मोदी , राहुल , सेकुलरिज्म जैसी बड़ी बड़ी बातें करने में इतने मशगूल थे कि अपने ही समाज के एक बड़े तबके पर और उसकी जरूरतों पर गौर करने का हम वक्त ही नहीं निकल पाये। इलाज कराने को अस्पताल और खाने को रोटी न मिली तो समाज के इस तबके ने एक जालसाज को भी अपना परमात्मा बना लिया। 
नित्यानंद , रामपाल ,आसाराम जैसे और भी बहुत आएंगे , इसी तरह लोगों की आस्था और धर्म के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे ,इनका धंधा ऐसे ही चलता रहेगा जब तक की हम अपने समाज को न बदले, जरुरत है समाज के उस तबके का विश्वास लोकतंत्र में जगाने की जो विश्व शक्ति बनने का सपना लिए दौड़ते हुए विकासशील हिन्दुस्तान में कहीं पीछे छुड़ता जा रहा है। 

भूखे हो पेट ,नंगे हो बदन तो रामपाल या आसाराम भी भगवान है
हम पत्थरों में  ईश्वर पूजते  है ,ये जालसाज तो फिर भी इंसान है 

Sunday, September 21, 2014

हिंदुस्तानी मुसलमान !!


"हिन्दुस्तान के मुसलमान हिन्दुस्तान के लिए जीयेंगे और हिन्दुस्तान के लिए मरेंगे भी"
                                                                                                                                           -  प्रधानमंत्री
                                                                                       
राजनीति में किसी बयान से ज्यादा बयान की टाइमिंग मायने रखती है और ये तो अपने देश का बच्चा बच्चा जानता है की मौजूदा वक्त में राजनीतिक बयानबाजी की इस कला के सबसे बड़े कलाकार खुद हमारे माननीय प्रधानमंत्री है। प्रधानमंत्री का बयान ऐसे वक्त पर आया है जब सीमा पार से अलकायदा के कीड़े हमारे हिन्दुस्तान में बिल बनाने की फ़िराक़ में है और सीमा के भीतर अपने आप को नेता समझने वाले कुछ जाहिल देश के सेकुलरिज्म को शर्मसार कर रहे है। प्रधानमंत्री का बयान सीमा पार के दुश्मनो और सीमा के भीतर के मूर्खों ,दोनों को एक करार जवाब है और वाकई काबिले तारीफ़ है।  
हमने तो सदा यही कहा था कि हम हिंदुस्तानी हिंदुस्तान के लिए जीयेंगे और मरेंगे आज अगर हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री को हिन्दुस्तानी मुसलमानों को अलग से उल्लेखित करने की नौबत आई है तो इसकी वजह भी खुद प्रधानमंत्री की ही पार्टी के चंद नेता है जो जब भी मुंह खोलते है तो पूरी संसद शर्मिंदा होती है। आदित्यनाथ,साक्षी महाराज जैसे लोगो को देख कर लगता है की चुनाव में चली मोदी लहर में कुछ अनावश्यक तत्व भी लहर के साथ संसद में आ पहुंचे है ,जो आये दिन अपनी मानसिक विकलांगता का परिचय देते हुए अपनी पार्टी और पूरे देश को शर्मसार करते है। 
बीते दिनों आये उपचुनाव के नतीजों से ये तो साफ़ है की लव जिहाद जैसे राजनीतिक हथकंडे और जाति मजहब के नाम पर वोट लेने की राजनीती को ये देश अब नकारना सीख गया है । बलात्कार और उत्पीड़न के मामलों को लव जिहाद का नाम देकर सियासती मुनाफा उठाने की जो कोशिश बीजेपी द्वारा की गयी,वो असल में उल्टी पड़ गयी और इसी के चलते कांग्रेस और सपा को भी सम्भलने का मौका मिल गया।  
दरअसल लव जिहाद जैसी कोई चीज का अस्तित्व ही नहीं है ,तो इस पर कुछ ज्यादा सोचने का कोई तुक भी नहीं  है। इसके अलावा भी देश में और बहुत कुछ हो रहा है जिस पर लिखा जा सकता है। अजीतसिंह का सरकारी बंगले के लिए संघर्ष और बिलावल भुट्टो का कश्मीर पर बयान ,जैसे मुद्दे हंसने हंसाने के लिए काफी है ,लव जिहाद जैसे भोंडे मजाक की जरुरत नहीं है। 
साढ़े सत्रह करोड हिंदुस्तानी मुस्लिमों में से ही किसी एक ने तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपती को कैसे राष्ट्रीय मीडिया के सामने हिंदुस्तानी मुस्लिमों की तरफ से जवाब दिया खुद देखिये----
(अतीत के पिटारे से एक वीडियो -)





Saturday, August 23, 2014

पलायन

एक शख्स जिसकी सोच और विचारों का अनुसरण करता हूँ ने एक बार कहा था पलायन का मतलब है संभावनाओं की तलाश में अपने क्षेत्र से बाहर निकलना , पलायन की इस परिभाषा से काफी हद तक संतुष्ट हूँ पर एक शंका है कि क्या पलायन हर बार अपने उद्देश्यों के साथ सफल होता है ?
ज्यादातर लोग पलायन करते है रोजगार के लिए , पर बड़े बड़े सपने रखने वाले हजारों नौजवान समय से पहले पलायन कर जाते है अच्छी शिक्षा और उज्जवल भविष्य के लिए।
निकलते है मेरे जैसे लोग अपने छोटे शहरों के सरकारी स्कूलों से , इन स्कूल्ज के  नामों में कहीं कोई स्टीफेंस या सेंट पोल्स नहीं आता था पर पढ़ाई करने वाले और कराने वाले यहां भी काफी काबिल दर्जे के होते थे। उन पढ़ाने वालों की ही काबिलियत का नतीजा था की हमें इम्तिहानो में अच्छे नंबर मिले , जिनकी बदोलत बेहतर भविष्य के लिए बिना मांगे ,फ्री में राय बांटने वालों ने हमें अपने शहर से बाहर भेजने के काबिल समझ लिया और दे डाली अपनी राय और आ पहुंचे हम बड़े शहरों के नामी कॉलेजज्  में।
पहले साल में जब आये थे तो इसी डर से कि प्रोफेसर अंग्रेजी में कुछ पूछ न ले , हम पूरा लेक्चर मौन मुद्रा में निकाल देते थे।  आते थे कुछ समाजसेवी किस्म के स्वघोषित महान लोग  हमदर्दी जताते हुए ये  पूछने कि तुम इतने चुप क्यों रहते हो , अब कैसे बताएं की बोलने में भी ये डर लगता है कि तुम में से ही कोई हसी न उड़ा दे , कहीं कोई गंवार न कह दे। शुरू में सोचा करते थे की हमने भी अंग्रेजी में टॉप मारा है पिच्यानवे प्रतिशत से ज्यादा नम्बरों से तो अब तो आगे कोई दिक्कत ही नहीं होगी पर यहाँ तो किसी ने अंग्रेजी के नंबर पूछे नहीं बल्कि ऐसे हिंदी मीडियम के छात्र जो अपने स्कूल में खुद की एक अलग पहचान रखते थे ,यहां किसी से बात तक करने से हिचकिचाते है।  
बंद कमरों में अपने गिने चुने दोस्तों के साथ सबटाइटल के सहारे अंग्रेजी फिल्मे देखने की कोशिश कर रहे इन लड़को का दोष सिर्फ इतना है की ये पिटबुल , एमिनेम या मायली सायरस के बजाय सोनू निगम या उदित नारायण के गाने सुन कर बड़े हुए।
खैर जो भी हो ,उज्जवल भविष्य का सपना लिए चले हिंदी वाले भले ही थोड़ी उपेक्षा का शिकार हुए हो पर इसी बहाने अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकल कर दुनिया जानने का मौका तो मिला। इस न दिखने वाले संघर्ष को जो शायद कभी न कभी मंजिल पर पहुँच ही जाएगा ,को समझती हुई दो पंक्तियाँ जो किसी महान आदमी ने हमारे जैसों के लिए ही लिख दी थी :-

"मंजिल मिल ही जायेगी भटकते ही सही ,गुमराह तो वो है जो घरों से निकले ही नहीं "



Tuesday, June 10, 2014

कांग्रेस : अर्श से फर्श तक

क्या कांग्रेस ख़त्म होने जा रही है , क्या 128 साल पुरानी कांग्रेस निकल चुकी है अपने पतन की तरफ ?
आजादी के बाद देश को सबसे पहली सरकार देने वाली मौलाना कलाम , चाचा नेहरू और सरदार पटेल की वो कांग्रेस जिसे कभी राजीव गांधी के नेतृत्व में 414 सीटें मिली थी ,आज 44 सीटों के साथ लोकसभा में पहुंची हुई है और इस युवा विकासशील भारत के मन से उतरते हुए नजर आ रही है।
परन्तु कांग्रेस का यह हाल होना लाजमी था , जिस हिसाब से उन्होंने बीते 10 सालों की अपनी हुकूमत में हमें तरह तरह के  भ्रष्टाचार और घोटालों  से परिचित कराया था, ये अंदेशा था कि कांग्रेस इस बार सत्ता में नहीं आ पायेगी पर कांग्रेस के इतने बूरी तरह पिटने की कल्पना तो किसी ने नहीं की होगी। वैसे कांग्रेस के घोटालो और भ्रष्टाचार ने इस देश के मीडिया को सही ढंग से सक्रिय कर दिया वरना टीवी पर समाचार चैनल लगा कर तो दो ही चीज़ें देखी जाती थी : एक सुबह का राशिफल और दूसरा शाम को मौसम समाचार।
ये 2G , CWG , कोल गेट , आदर्श जैसे घोटालो ने सरकार का दामन ऐसा पकड़ा की किसी टाइम पर 400 से ज्यादा सीटें लाने वाली पार्टी को आज महज 44 सीटों से संतोष करना पड़ गया।
आदरणीय मनमोहन सिंह जो नब्बे के दशक में देश के लिए संकटमोचक साबित हुए थे , इस बार प्रधानमन्त्री रहते हुए भी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक अपने पद का उपयोग देश को आगे बढ़ाने के लिए नहीं कर पाये , वजह सबको पता है सत्ता को पूरी तरह से एक परिवार के हाथों की कठपुतली बना देने की कीमत मनमोहन सिंह ने अपनी इज्जत गंवा कर उठाई और कांग्रेस पार्टी ने अपने इतिहास का सबसे घटिया प्रदर्शन देकर।
बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस अब वापस उठ पाएगी ,क्या वापस कांग्रेस कोई ऐसा कमाल दिखा पायेगी जैसा इंदिरा ने 1980 के चुनावों में दिखाया था ?
राजनीति में कुछ भी संभव है , हो सकता है कांग्रेस अपनी खोई हुई साख वापस हासिल कर ले , लेकिन इसके लिए जरुरी है परिवारवाद से परें हट कर शीर्ष नेतृत्व में कोई बड़ा परिवर्तन हो ,कोई ऐसा परिवर्तन जो पूरे संगठन में नयी जान फूंक सके,पर अभी ऐसे परिवर्तन की दूर दूर तक कोई सम्भावना नजर नहीं आ रही है। 

Friday, June 6, 2014

लुटती अस्मत बिलखती इंसानियत

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की करीबन 60 करोड़ की महिला आबादी आज अपनी अस्मत और अस्तित्व  को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है , 
अब किसी की माँ ने सब्जी लाने बाजार जाना तो किसी की बहन ने ट्यूशन जाना छोड़ दिया क्यूंकि अब सुबह के अख़बार से लेकर रात के टीवी सामाचार तक में, कुछ राजनीतिक खबरों को छोड़ दे तो बाकी बचे सभी किसी न किसी औरत की आबरू लूटने की ही कहानी कहते रहते है। 
अब बेटियों को एहतियात से जीने की हिदायते दी जाने लगी है।  अब डर लगता है इन बेटियों को, डर लगता है इन्हे कुछ दरिंदों से , इनका डरना लाजमी भी है क्यूंकि अब द्रौपदी की इज्जत बचाने कोई श्रीकृष्ण नहीं आने वाले है और बलात्कारी अब दुर्योधन से भी गए बीते हो गए है जिनके कदम अब किसी की इज्जत लूट लेने तक ही नहीं रुकते, जब तक उस अभागी के शरीर की एक एक नस हार कर दम न तोड़ दे तबतक ये दरिंदे इंसानियत को बोटी बोटी करते रहते है।
घावों पर मिर्च छिड़कने का काम हमारे नेताजी कर देते है जिनको रेप के बारे में कहना है कि लड़कों से गलतियां हो जातीं है। इन तथाकथित लड़कों की गलतियों की कीमत जिस दिन अपने नेताजी को समझ आजायेगी उस दिन इस दरिंदगी पर कुछ हद तक रोक लग जायेगी। 
कभी दिल्ली तो कभी बदायूं ,कभी दामिनी तो कभी गुड़िया , नाम अलग होते है , चेहरे अलग होते है पर हश्र सबका एक जैसा ही होता है। हम भी उठते है मोमबत्तियां जलाते है ,ट्विटर फेसबुक पर आर आई पी लिखते है और अपनी खुशकिस्मती की खैर मनाते हुए सो जाते है। बदायूं की घटना अपने पूरे  देश के मुंह पर एक तमाचा है जो बार बार यही पूछ रही है कि निर्भया के गुजर जाने के एक साल बाद भी हमने और हमारी सरकारों ने ऐसा क्या किया जो इस देश में और कोई दूसरी दामिनी ना बनने पाये।   

तेरी इज्जत तेरी आबरू , अब तेरे ही गले के फंदे बन गए 
तू मत आना इस जहां में ,यहां अब इन्सान दरिंदे बन गए 

Wednesday, May 14, 2014

बिन आँखों के दुनिया



“परेशानी हालात से नहीं खयालात से होती है”
बिना आँखों के जब ये दुनिया देखी कुछेक पल के लिए तो लगा की वाकई वो खयालात ही है जो बार बार परेशान करते है वरना हालात का रोना तो सभी रोते है
कल एक ब्लाइंड स्कूल में जाना हुआ तो अहसास हुआ कि इक ऐसी दुनिया भी है जहां आँखों के सारे काम कुछ हाथ करते है , उन बच्चों के पास आँखें नहीं थी पर जिन्दगी के प्रति ऐसी सकारात्मकता और ऐसा हौसला इससे पहले कभी न देखा था,
सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए सहारे के रूप में साथ में बनी दीवार जिस पर हाथ रख कर ये बच्चे दौड़ कर ऊपर नीचे आ जा रहे थे ,नन्ही हथेलियों के बार बार इस पर घिसे जाने की वजह से दीवार के उपरी हिस्से का पेंट भी अब उतर चुका था
हालात को दोष देने वाले लोग इन नन्ही हथेलियों पर बनी  किस्मत की रेखाओं को दोष देंगे लेकिन इन बच्चों के गजब के हौसले और आत्मबल का जिक्र करने की जहमत नहीं उठाएंगे |
महज 4-5 घंटों में इन बच्चों के जज्बे का कायल हो गया



दुनिया देखने को आँखें नहीं तो क्या हुआ
जिन्दगी जीने का जज्बा तो बेशुमार है

Monday, April 14, 2014

"The more you talk, the less it will happen."





"The more you talk, the less it will happen."
जहां एक ओर हम महिला सशक्तिकरण के नाम पर राजनीति कर रहे है वही दूसरी ओर इस समाज का एक घटिया सच ये भी है कि इस देश में हर 20 मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है और हर 3 मिनट में एक महिला सेक्सुअल हर्रास्मेंट का शिकार होती है | कब तक हम यूँ ही ऐसे गंभीर अपराधों के खिलाफ आवाज़ उठाने से शर्माते रहेंगे ?
हमारी इसी चुप्पी का हर्जाना कभी निर्भया को तो कभी गुडिया भुगतना पड़ता है, ये दरिंदगी तब तक हमारे समाज से नहीं जायेगी जब तक हमारा हलक ,हया के मारे इस के खिलाफ कोई आवाज़ निकालने से कतराता रहेगा ?

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ", स्कूल की दीवारों पर और किताबों में बहुत देखी है ये पंक्तियाँ ,पर आज भी इन्तजार है मुझे उस दिन का जब इन पंक्तियों को अमल में लाने की जहमत ये समाज उठाएगा | 


इस विडियो को देखने के बाद अपने जमीर में झांककर एक बार ये सोच कर जरूर देखिएगा कि क्या अब भी ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर हमारी चुप्पी जायज़ है ?



कुछ करना चाहे तो जमाने के अँधेरे घेर लेते है उसे,
 उसकी तरह कोई जी ले, तो जीना भूल जाए 

Tuesday, April 8, 2014

वाकई राजनीति बदल गयी है !!!

माला पहनाई और रख दिया एक.............
वो सच ही कह रहे थे कि "हम राजनीती करने नहीं , इसे बदलने आये है" वाकई राजनीति तो बदल दी इन्होने वर्ना कभी न देखा था किसी पार्टी के अध्यक्ष को 20 दिनों के अंदर 5 बार भीड़ में थप्पड़ खाते हुए ,या किसी S.H.O. द्वारा राज्य के कानून मंत्री को औकात में रहने की हिदायत देते हुए। हाँ हमने देखा था काशीराम जी को एक पत्रकार पर हाथ उठाते हुए ,हमने देखा था अफसरों को मंत्रियों के जूते साफ़ करते हुए पर पब्लिक से थप्पड़ या जूते खाने का मौका तो नेताजी को जीवन में सिर्फ एक ही बार मिलता था ,चाहे हुड्डा साब हो या चिदम्बरम जी ,मुझे तो याद नहीं कि अरविन्द से पहले किसी भी नेता पर इतने हमले हुए हो।  
चुनावी आचार संहिता लागु होने के दिन ही इतना ज्यादा उपद्रव हुआ था तो प्रचार के दौरान ऐसे थप्पड़ मुक्के चलना स्वाभाविक ही था परन्तु गौर करने लायक बात ये है कि सारे हमले सिर्फ एक ही लीडर पर हुए और वजह दी गयी वादे पूरे न करना,
इस देश के वोटर ऐसे तो कभी नहीं थे ,वर्ना वादों के नाम पर अगर थप्पड़ बरसते तो अपने सारे सांसदों और विधायकों के गालों पर आज अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों की दी हुई निशानियाँ होती। इस सब के पीछे चाहे कोई राजनीतिक साजिश हो या कोई और वजह, पर है तो ये एक तरह कि कायरता ही, जब हमारा संविधान हमें खुद हमारा नेता चुनने का हक़ देता है तो चुनाव से पहले ऐसी हिंसा शर्मनाक है।

ये स्याही ,अंडे और थप्पड़  का कल्चर हमारे हिंदुस्तान का नहीं है,लोकतंत्र को इस तरह की घटिया हरकतों के जरिये शर्मसार न किया जाए। 

Wednesday, April 2, 2014

धुंए में उड़ती जिन्दगी

आज कॉलेज से हॉस्टल आते वक्त पैरों में रहे सड़क पर पड़े कचरे पर नज़र डाली तो अधबुझी सिगरेट और उनके खाली पैकेट्स के अलावा कोई इक्का दुक्का ही अलग कचरा दिखा होगा। गौर से देखा तो पैकेट के ऊपरी भाग में ब्रांड के नाम के बाद शेष बचे दो तिहाई भाग में काले हुए फेंफड़े और गला दिखाया गया था और भविष्य में कैंसर के खतरे से आगाह भी किया गया था , तक़रीबन 6 फुट ऊपर से भी मेरा चश्मा सड़क पर पड़े इस पैकेट पर लिखी कैंसर की चेतावनी दिखा रहा था, पता नहीं इसे इस्तेमाल करने वाले कैसे इसे नजरअंदाज कर देते है।  
कॉलेज में तो टोबैको फ्री कैंपस के बोर्ड लगे है जिनकी प्रमाणिकता पर कोई संदेह नहीं है पर कैंपस की चारदीवारी से दो कदम बाहर जो रखे तो अपनी जवानी और भविष्य को सिगरेट के धुंए में उड़ाते हुए वो ब्रांडेड टीशर्ट पहने कानों में इयरफ़ोन डाले 'कूल ड्यूड्स' दिखाई देते है जिनको इस बात का कोई इल्म ही नहीं है कि घर से रोज़ फ़ोन करने वाली उनकी माँ को आज भी ये लगता है कि उसका बेटा  आज भी एल्पेनलिब्बेल खाता है और फ्रूटी पीता  है। 

खैर समाज बदल रहा है, बदलते समाज में जहां एक ओर ये जवान लड़के लडकियां भ्रष्टाचार ,गुंडागर्दी या दहेज़ जैसी रूढ़िवादी परम्पराओं के खिलाफ आवाज उठा रहे है वहीँ एक सच ये भी है कि इनके लिए सिगरेट शराब जैसी चीज़ें फैशन बन गयी है। 

अपने विचारों को व्यक्त करने में अगर यहाँ मैंने किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है तो इसके लिए मुझे कोई खेद नहीं है क्योंकि मैं नहीं समझता कि सिगरेट के कश में अपनी जिंदगी उड़ाना किसी समस्या का समाधान है या किसी तरह का फैशन स्टेटमेंट है।    


अंत में गुलजार साहब की दो पंक्तियाँ
"मैं सिगरेट तो नहीं पीता पर हर आने वाले से ये पूछ लेता हूँ - माचिस है क्या?
मैं सिगरेट तो नहीं पीता पर हर आने वाले से ये पूछ लेता हूँ - माचिस है क्या?
क्यूंकी ऐसा बहुत कुछ है जिसे मैं जला देना चाहता हूँ "

Wednesday, March 5, 2014

चुनावी आगाज - पत्थरो और लाठियों के साथ

चुनावी आचार संहिता आज लागू ही हुई थी कि कहीं पर किसी को गिरफ्तार कर लिया , कहीं प्रदर्शन कहीं पत्थराव , वजह जो भी हो इस सब के पीछे पर इज्जत तो इस लोकतंत्र की ही लूटी गयी। कुर्सियां और पत्थर उछाले जा रहे है , किसी का सर फोड़ दिया किसी को लाठियों से पीटा  गया।  टीवी डिबेट्स में बैठकर अपनी अपनी पार्टी को दूध की धुली  बता कर सामने वालो पर भर भर के कीचड़ उछाला  जा रहा है।
 क्या दुर्भाग्य आ गया है इस देश का , दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की गरिमा की धज्जियां उड़ाई जा रही है , और ऐसा करने वाले कोई और नहीं बल्कि खुद वो ढोंगी लोग है जिन्होंने कभी बड़ी ही बुलंद आवाज़ों में इस लोकतंत्र की गरिमा बनाये रखने की शपथ ली थी। कुछ ही दिन पहले की बात है तेलंगाना मुद्दे पर एक महाशय ने मिर्ची स्प्रे छिड़क दिया ,किसी ने माइक तोड़ दिया , हद तो तब हो गयी जब उत्तरप्रदेश विधानसभा में दो महोदय निर्वस्त्र हो गए और  अभी कुछ दिन पहले कानपुर में एक विधायक और उनके साथियों ने मेडिकल कॉलेज के छात्रों को हॉस्टल में घुस कर मारा।
चंद वोटो के खातिर उपद्रव मचाने वाले इन नेताओं को इतने दिन से इग्नोर कर रहा था पर आज ये उंगलियां अपने आप कलमक्रांति पर टाइप करने लगी ,जब घरवालो ने फ़ोन करके मुझे ये बोला कि" बेटा हॉस्टल से बाहर जाए तो ध्यान रखना ,कोशिश करना कि जाने की जरुरत ना ही पड़े ,ये ख़बरों में दिखा रहे है कि केजरीवाल की गाडी पर हमला हुआ है और दिल्ली लखनऊ में भी ये लोग आपस में लड़ रहे है "
तो अब हालत ये हो गयी है कि घरवालो को ये चिंता रहती है कि उनका लड़का राजनीती के इस घटिया रूप की चपेट में ना आ जाए। 
सोशल मीडिया पर भी नमो और अरविन्द के चेले अपने अपने गुरुओं के बचाव में अंधाधुंध स्टेटस और फोटोज दागने में लगे है ,और इसी जद्दोजहद में अपनी भाषा और संयम को राजनीती से भी नीचे गिरा दिया इन अंधे भक्तों ने। 
इन फूल ,पंजे, झाड़ू और साइकिल वालों ने उस तिरंगे और संसद को शर्मसार कर दिया है।  


Wednesday, January 29, 2014

राजनीतिक दल दुकान बन गए है?

कल कहीं ये ना पूछना पड़े की - क्या राजनीतिक  दल दुकान बन गए है, रवीश कुमार सर  ने इस सवाल के साथ आज का प्राइम टाइम समाप्त कर दिया परन्तु मेरे जैसे फोकट प्राणियों के लिए इस देश के भविष्य की राजनीति के कुछ भयानक और मजेदार दृश्य छोड़ दिए जिसमे देशभर के 790 (545+245) परिवारो को अनिश्चित काल के लिए स्थायी रोजगार दिया गया होगा, लोकसभा क्षेत्रों के स्थान  पर लोकसभा परिवार होंगे - गांधी परिवार , यादव परिवार , बादल लोकसभा तो कहीं  चौटाला  लोकसभा , कहीं ठाकरे लोकसभा तो कहीं सिंधिया लोकसभा। सबकी दुकाने होगी संसद वाले मॉल में। चुनाव का तो नामोनिशान ही लगभग मिट जाएगा , अगर कहीं चुनाव होंगे भी तो वो होंगे अन्तरापरिवार चुनाव, जो इन्ही 790 परिवारों में किसी परिवार में  एक समय में एक से ज्यादा बेरोजगार संतानों के होने पर  होगा। राजनीती अगर इसी ढर्रे पर बढ़ती रही तो खैर वो दिन दूर नहीं जब मेरी इन कल्पनाओं में से कुछ सही हो जायेगी , इतिहास कि किताबों में लोदी वंश या तुगलक वंश की जगह बादल वंश या गांधी वंश ले लेंगे।
तो बात वंशवाद की हो रही थी, बड़े बड़े पार्टी  प्रवक्ता खुद के दामन में झांके बगैर विपक्षियों पर जो प्रहार कर रहे थे वो निश्चित रूप से उनके डिबेट में आने से पहले किये हुए होमवर्क को दर्शा रहा था।
जब रवीश सर कांग्रेस वाले साब से कन्नोज में उम्मीदवार खड़ा न करने की वजह पूछते है तो वो बोलते है कि
"समाजवादी पार्टी ने भी तो कुछ जगहों पर हमारे खिलाफ उम्मीदवार नहीं खड़े किये"
यही हाल हमारी प्यारी भाजपा का है , उनके प्रत्याशी भी कन्नोज में नामांकन नहीं कर पाते।
महाराष्ट्र से आये राउत सर बोलते है -" वंशवाद तो हमारे बॉलीवुड में भी है ही "
तो सर सिनेमा  में जो वंशवाद है वो कम से कम इस देश को प्रभावित तो नहीं करता , अभिषेक बच्चन कि फ़िल्म कोई इसलिए जाकर नहीं देखता क्यों कि वो अमिताभ बच्चन सर के पुत्र है। फरहान अख्तर को बेस्ट एक्टर इसलिए नहीं मिलता क्यूंकि उनके पिता जावेद अख्तर है , ऐसे उदाहरण तो अनेकों है पर आप नेता लोगो को समझाने के लिए तो कम ही है।


जैसा कि रवीश सर कहते है -" गलती हो सकती है , होनी भी चाहिए ", तो अगर किसी को मेरे विचार गलत लगे तो कृपया माफ़ करें।
सभी तरह की  आलोचनाओं का स्वागत है , अपने मूल्यवान कमेंट्स देने से हिचके नही। …

Thursday, January 2, 2014

राजनीति- टोपी ,झाड़ू और आम आदमी

मैं ईश्वर कि शपथ लेता हु कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सची श्रद्धा और निष्ठां रखूँगा , मैं भारत कि प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा। 
इसी शपथ के साथ एक आम आदमी और उसके कुछ  साथी राजधानी में सत्ता पर काबिज़ हो गये। 
राजनीतिक  दिग्गज  जो कुछ दिन पहले तक इस आम आदमी को बरसाती कीड़ा बोल रहे थे, उसी कीड़े ने
रामलीला मैदान से अपना संघर्ष शुरू किया और आज दिल्ली विधानसभा तक पहुँच गया है। इस कीड़े ने तमाम राजनीतिक पंडितों की  आँखों पर लगी अहंकार और गलतफहमी की  पट्टी कुतर डाली। अहंकार तो उनको हो गया था जो 15 साल से कुर्सी गरम कर रहे थे और गलतफहमी में कुछ वो लोग थे जो किसी की लहर के ही भरोसे बैठे थे।
कुछ बात तो है ही इस आम आदमी में जो नमो इसके खिलाफ कुछ भी बोलने का जोखिम नहीं उठाना चाहते  और रा.गा.  पहले ही बोल चुके  है की हमें आम आदमी पार्टी से सीखने की जरुरत है।
 देश बदल रहा है, राजनीति बदल रही है -ये मोदी कि लहर नहीं केजरीवाल कि आंधी चल रही है।
 ये आम आदमी अब रुकने वाला नहीं है,इसकी मजबूरी को इसकी कमजोरी समझकर हर बार इसके साथ अन्याय हुआ,लोकतंत्र और राजनीती कि परिभाषा ही बदल दी गयी, लेकिन अब और नहीं। राजनीती की गन्दगी साफ़ करने के लिए अब झाड़ू थाम ली है आम आदमी ने। रामलीला मैदान से निकल कर ये झाड़ू और टोपी वाले रायसिन्हा हिल के लिए चल निकले है। कागजों पर भले ही रामलीला मैदान से रायसिन्हा हिल के बीच की दूरी 30 किलोमीटर हो पर असल में ये रास्ता पुरे देश के कोने कोने में से होकर निकलेगा।
  सत्ता के गलियारों में तूफ़ान बन कर आया ये आम आदमी राजनीति को मंदिर , मस्जिद,  जाति और धर्म से ऊपर उठाकर बिजली , पानी , गरीबों और महिलाओं की सुरक्षा तक ले आया है।
देश की राजनीति में इस सकारात्मक बदलाव का खुले दिल से स्वागत  करते हुए , आशा करता हूँ की आम आदमी अपने उसूलों और शपथ के एक एक शब्द का सम्मान करेगा और भविष्य में  आम से ख़ास होने के बाद भी दिल से हमेशा  आम आदमी ही रहेगा। 
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