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कलमक्रान्ति : बिन आँखों के दुनिया

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-कलमक्रान्ति

Wednesday, May 14, 2014

बिन आँखों के दुनिया



“परेशानी हालात से नहीं खयालात से होती है”
बिना आँखों के जब ये दुनिया देखी कुछेक पल के लिए तो लगा की वाकई वो खयालात ही है जो बार बार परेशान करते है वरना हालात का रोना तो सभी रोते है
कल एक ब्लाइंड स्कूल में जाना हुआ तो अहसास हुआ कि इक ऐसी दुनिया भी है जहां आँखों के सारे काम कुछ हाथ करते है , उन बच्चों के पास आँखें नहीं थी पर जिन्दगी के प्रति ऐसी सकारात्मकता और ऐसा हौसला इससे पहले कभी न देखा था,
सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए सहारे के रूप में साथ में बनी दीवार जिस पर हाथ रख कर ये बच्चे दौड़ कर ऊपर नीचे आ जा रहे थे ,नन्ही हथेलियों के बार बार इस पर घिसे जाने की वजह से दीवार के उपरी हिस्से का पेंट भी अब उतर चुका था
हालात को दोष देने वाले लोग इन नन्ही हथेलियों पर बनी  किस्मत की रेखाओं को दोष देंगे लेकिन इन बच्चों के गजब के हौसले और आत्मबल का जिक्र करने की जहमत नहीं उठाएंगे |
महज 4-5 घंटों में इन बच्चों के जज्बे का कायल हो गया



दुनिया देखने को आँखें नहीं तो क्या हुआ
जिन्दगी जीने का जज्बा तो बेशुमार है

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