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कलमक्रान्ति : लुटती अस्मत बिलखती इंसानियत

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-कलमक्रान्ति

Friday, June 6, 2014

लुटती अस्मत बिलखती इंसानियत

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की करीबन 60 करोड़ की महिला आबादी आज अपनी अस्मत और अस्तित्व  को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है , 
अब किसी की माँ ने सब्जी लाने बाजार जाना तो किसी की बहन ने ट्यूशन जाना छोड़ दिया क्यूंकि अब सुबह के अख़बार से लेकर रात के टीवी सामाचार तक में, कुछ राजनीतिक खबरों को छोड़ दे तो बाकी बचे सभी किसी न किसी औरत की आबरू लूटने की ही कहानी कहते रहते है। 
अब बेटियों को एहतियात से जीने की हिदायते दी जाने लगी है।  अब डर लगता है इन बेटियों को, डर लगता है इन्हे कुछ दरिंदों से , इनका डरना लाजमी भी है क्यूंकि अब द्रौपदी की इज्जत बचाने कोई श्रीकृष्ण नहीं आने वाले है और बलात्कारी अब दुर्योधन से भी गए बीते हो गए है जिनके कदम अब किसी की इज्जत लूट लेने तक ही नहीं रुकते, जब तक उस अभागी के शरीर की एक एक नस हार कर दम न तोड़ दे तबतक ये दरिंदे इंसानियत को बोटी बोटी करते रहते है।
घावों पर मिर्च छिड़कने का काम हमारे नेताजी कर देते है जिनको रेप के बारे में कहना है कि लड़कों से गलतियां हो जातीं है। इन तथाकथित लड़कों की गलतियों की कीमत जिस दिन अपने नेताजी को समझ आजायेगी उस दिन इस दरिंदगी पर कुछ हद तक रोक लग जायेगी। 
कभी दिल्ली तो कभी बदायूं ,कभी दामिनी तो कभी गुड़िया , नाम अलग होते है , चेहरे अलग होते है पर हश्र सबका एक जैसा ही होता है। हम भी उठते है मोमबत्तियां जलाते है ,ट्विटर फेसबुक पर आर आई पी लिखते है और अपनी खुशकिस्मती की खैर मनाते हुए सो जाते है। बदायूं की घटना अपने पूरे  देश के मुंह पर एक तमाचा है जो बार बार यही पूछ रही है कि निर्भया के गुजर जाने के एक साल बाद भी हमने और हमारी सरकारों ने ऐसा क्या किया जो इस देश में और कोई दूसरी दामिनी ना बनने पाये।   

तेरी इज्जत तेरी आबरू , अब तेरे ही गले के फंदे बन गए 
तू मत आना इस जहां में ,यहां अब इन्सान दरिंदे बन गए 

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