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कलमक्रान्ति : April 2014

अपने आजाद विचार,व्यंग्य या सुझाव रखने के लिए इस ब्लॉग पर मुझे या आपको कोई मनाही नहीं है
-कलमक्रान्ति

Monday, April 14, 2014

"The more you talk, the less it will happen."





"The more you talk, the less it will happen."
जहां एक ओर हम महिला सशक्तिकरण के नाम पर राजनीति कर रहे है वही दूसरी ओर इस समाज का एक घटिया सच ये भी है कि इस देश में हर 20 मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है और हर 3 मिनट में एक महिला सेक्सुअल हर्रास्मेंट का शिकार होती है | कब तक हम यूँ ही ऐसे गंभीर अपराधों के खिलाफ आवाज़ उठाने से शर्माते रहेंगे ?
हमारी इसी चुप्पी का हर्जाना कभी निर्भया को तो कभी गुडिया भुगतना पड़ता है, ये दरिंदगी तब तक हमारे समाज से नहीं जायेगी जब तक हमारा हलक ,हया के मारे इस के खिलाफ कोई आवाज़ निकालने से कतराता रहेगा ?

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ", स्कूल की दीवारों पर और किताबों में बहुत देखी है ये पंक्तियाँ ,पर आज भी इन्तजार है मुझे उस दिन का जब इन पंक्तियों को अमल में लाने की जहमत ये समाज उठाएगा | 


इस विडियो को देखने के बाद अपने जमीर में झांककर एक बार ये सोच कर जरूर देखिएगा कि क्या अब भी ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर हमारी चुप्पी जायज़ है ?



कुछ करना चाहे तो जमाने के अँधेरे घेर लेते है उसे,
 उसकी तरह कोई जी ले, तो जीना भूल जाए 

Tuesday, April 8, 2014

वाकई राजनीति बदल गयी है !!!

माला पहनाई और रख दिया एक.............
वो सच ही कह रहे थे कि "हम राजनीती करने नहीं , इसे बदलने आये है" वाकई राजनीति तो बदल दी इन्होने वर्ना कभी न देखा था किसी पार्टी के अध्यक्ष को 20 दिनों के अंदर 5 बार भीड़ में थप्पड़ खाते हुए ,या किसी S.H.O. द्वारा राज्य के कानून मंत्री को औकात में रहने की हिदायत देते हुए। हाँ हमने देखा था काशीराम जी को एक पत्रकार पर हाथ उठाते हुए ,हमने देखा था अफसरों को मंत्रियों के जूते साफ़ करते हुए पर पब्लिक से थप्पड़ या जूते खाने का मौका तो नेताजी को जीवन में सिर्फ एक ही बार मिलता था ,चाहे हुड्डा साब हो या चिदम्बरम जी ,मुझे तो याद नहीं कि अरविन्द से पहले किसी भी नेता पर इतने हमले हुए हो।  
चुनावी आचार संहिता लागु होने के दिन ही इतना ज्यादा उपद्रव हुआ था तो प्रचार के दौरान ऐसे थप्पड़ मुक्के चलना स्वाभाविक ही था परन्तु गौर करने लायक बात ये है कि सारे हमले सिर्फ एक ही लीडर पर हुए और वजह दी गयी वादे पूरे न करना,
इस देश के वोटर ऐसे तो कभी नहीं थे ,वर्ना वादों के नाम पर अगर थप्पड़ बरसते तो अपने सारे सांसदों और विधायकों के गालों पर आज अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों की दी हुई निशानियाँ होती। इस सब के पीछे चाहे कोई राजनीतिक साजिश हो या कोई और वजह, पर है तो ये एक तरह कि कायरता ही, जब हमारा संविधान हमें खुद हमारा नेता चुनने का हक़ देता है तो चुनाव से पहले ऐसी हिंसा शर्मनाक है।

ये स्याही ,अंडे और थप्पड़  का कल्चर हमारे हिंदुस्तान का नहीं है,लोकतंत्र को इस तरह की घटिया हरकतों के जरिये शर्मसार न किया जाए। 

Wednesday, April 2, 2014

धुंए में उड़ती जिन्दगी

आज कॉलेज से हॉस्टल आते वक्त पैरों में रहे सड़क पर पड़े कचरे पर नज़र डाली तो अधबुझी सिगरेट और उनके खाली पैकेट्स के अलावा कोई इक्का दुक्का ही अलग कचरा दिखा होगा। गौर से देखा तो पैकेट के ऊपरी भाग में ब्रांड के नाम के बाद शेष बचे दो तिहाई भाग में काले हुए फेंफड़े और गला दिखाया गया था और भविष्य में कैंसर के खतरे से आगाह भी किया गया था , तक़रीबन 6 फुट ऊपर से भी मेरा चश्मा सड़क पर पड़े इस पैकेट पर लिखी कैंसर की चेतावनी दिखा रहा था, पता नहीं इसे इस्तेमाल करने वाले कैसे इसे नजरअंदाज कर देते है।  
कॉलेज में तो टोबैको फ्री कैंपस के बोर्ड लगे है जिनकी प्रमाणिकता पर कोई संदेह नहीं है पर कैंपस की चारदीवारी से दो कदम बाहर जो रखे तो अपनी जवानी और भविष्य को सिगरेट के धुंए में उड़ाते हुए वो ब्रांडेड टीशर्ट पहने कानों में इयरफ़ोन डाले 'कूल ड्यूड्स' दिखाई देते है जिनको इस बात का कोई इल्म ही नहीं है कि घर से रोज़ फ़ोन करने वाली उनकी माँ को आज भी ये लगता है कि उसका बेटा  आज भी एल्पेनलिब्बेल खाता है और फ्रूटी पीता  है। 

खैर समाज बदल रहा है, बदलते समाज में जहां एक ओर ये जवान लड़के लडकियां भ्रष्टाचार ,गुंडागर्दी या दहेज़ जैसी रूढ़िवादी परम्पराओं के खिलाफ आवाज उठा रहे है वहीँ एक सच ये भी है कि इनके लिए सिगरेट शराब जैसी चीज़ें फैशन बन गयी है। 

अपने विचारों को व्यक्त करने में अगर यहाँ मैंने किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है तो इसके लिए मुझे कोई खेद नहीं है क्योंकि मैं नहीं समझता कि सिगरेट के कश में अपनी जिंदगी उड़ाना किसी समस्या का समाधान है या किसी तरह का फैशन स्टेटमेंट है।    


अंत में गुलजार साहब की दो पंक्तियाँ
"मैं सिगरेट तो नहीं पीता पर हर आने वाले से ये पूछ लेता हूँ - माचिस है क्या?
मैं सिगरेट तो नहीं पीता पर हर आने वाले से ये पूछ लेता हूँ - माचिस है क्या?
क्यूंकी ऐसा बहुत कुछ है जिसे मैं जला देना चाहता हूँ "

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